कार्ल रिटर(1779-1859)
कार्ल रिटर हम्बोल्ट के समकालीन भूगोलवेत्ता थे। वह प्रखर बुद्धि ,प्रतिभावान व्यक्ति थे। वो ईश्वर पर आस्था रखता था। वह अनुभविक शोध मे विश्वास व्यक्त वाला, क्षेत्र- कार्य को मनाने वाला भूगोलवेत्ता था ।उन्होने भूगोल को एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप मे विकसित करने मे महत्तवपूर्ण योगदान दिया।
रिटर ने प्रादेशिक भूगोल मे तुल्नात्तमक विधि का शुरूवात किया।
विविधता मे एकता का नियम
रिटर ने विविधता मे एकता के आधारभूत नियम का विकास किया । मानव के आवास मे मूल -नियम जैविक एवं अजैविक घटक मे निहित आधारभूत एकता है ।
रिटर का नज़रिया यह था कि धरती के विभिन्न हिस्सों मे भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ मानव समाज के विकास और उनके इतिहास को प्रभावित करती है । उन्होने भूगोल को केवल स्थानों के विवरण के रूप मे नही देखा, अपितु इसे मानवता और प्रकृति के बीच के संबंधों को समझने का एक महत्त्वपूर्ण साधन माना।
भूगोल मे रिटर का सिद्धांत
1-भूगोल का एतिहासिक दृष्टिकोण।
2- पर्यावरणीय निर्धारणवाद
3-भौगोलिक एकताऔर समग्र दृष्टिकोण।
4-मानव और प्रकृति संबंध
5-भूगोल और ईस्वर
रिटर कि रचनाए
1- एर्ड्कुन्डे रिटर कि यह प्रमुख रचना थी जिसका अर्थ है पृथ्वी का अध्ययन प्रक्रति और मानव इतिहास के संबन्ध मे इस पुस्तक मे प्रमुख रूप से यूरोप, एशिया और अफ्रीका के क्षेत्रो विश्लेषण किया गया है।
2-यूरोप का एतिहासिक,भौगोल तथा संख्याकीय चित्रण 1804
3- यूरोप का प्राकृतिक संसाधनो के छ: 6 मानचित्र
4- काला तथा केस्पियन सागर के मध्य के प्रदेशों का मानव स्थानांतरण